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Geopolitics & National Security
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अफगानिस्तान के बाद कश्मीर का सपना देख रही पाकिस्तान की आईएसआई

कर्नल शिवदान सिंह
शनि, 11 सितम्बर 2021   |   6 मिनट में पढ़ें

अफगानिस्तान में तालिबान के द्वारा सत्ता हथियाने के बाद पाकिस्तान की कुख्यात आईएसआई पूरे विश्व में  यह प्रचार करने में लग गई है कि तालिबान को सत्ता तक पहुंचाने में उसका बहुत बड़ा हाथ  है। इसके लिए  तालिबान के काबुल में पहुंचते ही आईएसआई के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद स्वयं  काबुल पहुंच गए और इसका विश्व मीडिया पर पूरा प्रचार प्रसार किया। जबकि आईएसआई एक इंटेलिजेंस एजेंसी  है और इस प्रकार की संस्थाओं के प्रमुखों के इस प्रकार के दौरे गुप्त रखे जाते हैं। इस दौरे के फौरन बाद तालिबान को और भरोसा देने के लिए और उन्हें अपने प्रभाव में लेने के लिए पाकिस्तान ने पंजशीर घाटी में अपने वायु सेना से वहां पर बमबारी करा कर  तालिबान के विरुद्ध लड़ रहे अफगानिस्तान के भूतपूर्व राष्ट्रपति अमरूला और उनके नेतृत्व में वहां की सेना को परास्त करने की नाकाम कोशिश की। इस सब के बाद काफी विचार-विमर्श के बाद तालिबान ने काबुल में अपनी सरकार का गठन किया और इस सरकार में  पूरे विश्व के देश आशा कर रहे थे कि इसमें अफगानिस्तान के प्रतिष्ठित और हर वर्ग के लोगों को मंत्रिमंडल में स्थान दिया जाएगा। परंतु पाकिस्तान के इशारे पर इस मंत्रिमंडल में 14 ऐसे मंत्री बनाए गए हैं कि जिनके विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र संघ ने अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी होने की  घोषणा की हुई है और  गृह मंत्री हक्कानी पर 37 करोड़ का इनाम भी घोषित किया हुआ है। अब इस प्रकार की सरकार के लिए पाकिस्तान एक प्रकार से उसके विदेश विभाग को संभालने का काम कर रहा है। इसका तात्पर्य है जिस प्रकार किसी देश का विदेश विभाग उस देश के संबंध अन्य देशों से स्थापित करता है उसी प्रकार पाकिस्तान अफगानिस्तान के लिए मान्यता और मदद और देशों से मांग रहा है। इस प्रकार पाकिस्तान पूरे विश्व को यह दिखा रहा है कि तालिबान उसकी कठपुतली है और अब वह पूरे दक्षिण एशिया में जहां चाहे आतंकवाद और मुस्लिम कट्टरपंथ को फैला सकता है। जैसा कि उसने अफगानिस्तान में अमेरिकी सेनाओं के रहने के बावजूद किया है और अमेरिकी सेनाओं को वहां से वापस जाने के लिए विवश कर के तालिबान को सत्ता दोबारा सौंप दी है।

अफगानिस्तान में तालिबान को स्थापित करने के बाद तालिबान समर्थित आतंकियों के द्वारा अब पाकिस्तान भारत के कश्मीर पर अपनी नजर गड़ा रहा है। इसके लिए सबसे पहले उसने कश्मीर में सैयद अली शाह गिलानी की मौत के बाद हुर्रियत कांफ्रेंस के अध्यक्ष पद पर अपने चहेते मसरत आलम को नियुक्त करवा दिया है। इसके द्वारा उसने भारत को यह संदेश देने की कोशिश की है कि कश्मीर में अलगाववाद की कोशिश  बदस्तूर जारी रहेंगी। जबकि मसरत आलम के खिलाफ 27 अपराधिक मुकदमे विभिन्न अदालतों में लंबित हैं। यह वही मसरत आलम है जिसने श्रीनगर की गलियों में 2010 में बड़े पैमाने पर हिंसा कराई थी जिसमें 120 लोग मारे गए थे। इस समय मसरत आलम दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद है। फिर भी ऐसे अपराधी को हुर्रियत कान्फ्रेंस का अध्यक्ष बना दिया गया है जो इस संस्था का असली चेहरा दुनिया को दिखाने के लिए पर्याप्त है। इसके साथ साथ पाकिस्तान ने कश्मीर में आतंकवाद को चलाने वाले आतंकी गुटों जैसे  लश्कर-ए-तैयबा, हिज्बुल मुजाहिदीन के उन आतंकियों का जो अफगानिस्तान में तालिबान के साथ लड़ने के बाद वापस आए हैं उनका पाक अधिकृत कश्मीर के मुजफ्फराबाद में गर्मजोशी से स्वागत किया गया है। इसके अतिरिक्त उसने इस क्षेत्र के कोटली, मुरीदके इत्यादि में चल रहे आतंकी कैंपों में दोबारा से सरगर्मी बढ़ा दी है।  और वह पाकिस्तान के खासकर पाक अधिकृत कश्मीर के नौजवानों को यह कह रहा है की अफगानिस्तान की तरह एक दिन कश्मीर में उनका ही राज होगा। इसी प्रयास में उसने कश्मीर में घुसपैठ की कोशिशों को बढ़ा दिया है।  उसकी इन हरकतों से यह साफ हो जाता है कि पाकिस्तान अब निकट भविष्य में कश्मीर में आतंकवाद को एक बार फिर बढ़ावा दे सकता है।

चीन ने पाकिस्तान और दक्षिण एशिया के अन्य देशों के साथ एक बेल्ट एक सड़क परियोजना के अंतर्गत बड़ा निवेश पाकिस्तान में सांझा आर्थिक गलियारे में किया है। इसके द्वारा वह पाकिस्तान में अपने औद्योगिक विकास को और बढ़ाना चाहता है। इसी उद्देश्य के लिए उसने काराकोरम सड़क का निर्माण किया है जिसके द्वारा चीन  सीधे पाकिस्तान के ग्वादर समुद्री तट तक जुड़ जाएगा। जिसके द्वारा उसके पास अपने विश्व व्यापार के लिए दक्षिण चीन सागर के साथ-साथ हिंद महासागर का यह क्षेत्र भी होगा इस प्रकार चीन अपने आर्थिक और व्यापारिक हितों के कारण पाकिस्तान की हर बात इस समय मानने के लिए  दबाव में है। जिसका प्रदर्शन उसने  पूर्वी लद्दाख के गलवान में किया। जिसमें उसकी सेना ने भारतीय सेना के  निहत्थे सैनिकों पर हमला किया जिसमें चीन और भारत के बहुत से सैनिक मारे गए। इस क्षेत्र में 1997  की एक संधि के अनुसार दोनों देश  की सेनाएं बगैर हथियार के  मिलेंगी जिसके अनुसार भारतीय सैनिक बगैर हथियार के वहां ऊपर गए थे परंतु चीनी सैनिकों ने अपने छुपे हुए हत्यारों से भारतीय सैनिकों पर हमला करके इस संधि का उल्लंघन किया। जिसके कारण दोनों देशों के बीच में तनाव पैदा हुआ। यह तनाव चीन ने पाकिस्तान के कहने पर किया था क्योंकि भारत ने  6 अगस्त 2019 में जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटा कर इस राज्य को देश के अन्य राज्यों की तरह बना दिया था। जिसके कारण देश के अन्य भागों की तरह यहां भी भारतीय कानून समान प्रकार से लागू हो सके।  इसके द्वारा पाकिस्तान समर्थित अलगाववादी तत्वों पर कश्मीर में लगाम लगनी शुरू हो गई और मसरत आलम जैसे अलगाववादियों को जेलों में ठूंस दिया गया। इसी प्रकार अन्य अलगाववादियों पर कानून का शिकंजा कसने के बाद घाटी में आतंकवाद मैं कमी आई है। कश्मीर की अशांति पाकिस्तान को पसंद नहीं आई और पाकिस्तान के इशारे पर काम करने वाले तत्वों के मनोबल पर बुरा प्रभाव पड़ा। जिसको वह चीन की उपरोक्त हरकत के द्वारा ठीक करने की कोशिश कर रहा था। परंतु यहां भी भारत ने चीन को कड़ा जवाब देकर उसकी इस हरकत को भी नाकाम कर दिया है।

अब पाकिस्तान भारत के विरुद्ध पुराने समय की तरह आमने सामने का युद्ध नहीं लड़ेगा बल्कि इसके स्थान पर वह नई तकनीक के अनुसार हाइब्रिड प्रणाली का युद्ध लड़ने की योजना बना रहा है। इसके अनुसार दुश्मन देश में मनोवैज्ञानिक प्रोपेगेंडा सोशल मीडिया के द्वारा चला कर वहां पर सामाजिक उथल-पुथल करवाना होता है जिसके द्वारा अक्सर सांप्रदायिक  दंगे बड़े पैमाने पर होते हैं। इसकी कोशिश पाकिस्तान लंबे समय से तरह-तरह के विवाद भारत में पैदा करके करने की कोशिश कर रहा है। इसी के अंतर्गत  नागरिकता कानून मैं संशोधन होने के बाद दक्षिण दिल्ली में साइन बाग का धरना प्रदर्शन करवाया गया जिसमें  खालिस्तान और कश्मीर के अलगाववादी तत्वों ने पूरा-पूरा सहयोग किया। जिसकी परिणति दिल्ली दंगों के रूप में में उस समय देखी गई जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दिल्ली का दौरा कर रहे थे। जिसमें  विश्व मीडिया दिल्ली में जमा था जिसने इन दंगों को पूरे विश्व में दिखाकर भारत की स्थिरता के बारे में शक पैदा करने की कोशिश की। जिससे भारत की महाशक्ति बनने की योजना पर प्रभाव पड सके। इसी प्रकार के तरह-तरह के विवाद पाकिस्तान की आईएसआई भारत में समय-समय पर कराती आई है। जैसे कि 2013 में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में एक छोटे से झगड़े को इतने बड़े सांप्रदायिक दंगे में बदल दिया गया जिसके कारण इन दंगों में 97 लोग मारे गए और लाखों लोग सालों तक शरणार्थी शिविरों में रहने के लिए मजबूर हुए। इसके अतिरिक्त देश में अस्थिरता पैदा करने के लिए धमाके और आतंकवादी गतिविधियां आई एस आई कराती रहती है।

उपरोक्त स्थिति में जब पाकिस्तान की आईएसआई स्वयं को अफगानिस्तान  मैं सफल महसूस कर रही है और उसका मनोबल आसमान को छू रहा है तो  भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के बारे में देश की सेनाओं को और आंतरिक सुरक्षा के लिए देश के अन्य सुरक्षा बलों  और इंटेलिजेंस एजेंसियों को और भी सतर्क रहने की आवश्यकता है। इस समय हमारे देशवासियों को पाकिस्तान की कश्मीर को हड़पने की मनसा को समझते हुए और भी चौकन्ना रहने की आवश्यकता है। क्योंकि पाकिस्तान देश में सामाजिक अस्थिरता पैदा करके भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और  अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा पर प्रतिकूल प्रभाव डालना चाहता है। इसलिए इस समय हमारे देशवासियों को और खासकर राजनीतिक दलों को वोटों की राजनीति के लिए सांप्रदायिक सद्भाव को नहीं बिगाड़ना चाहिए। क्योंकि अक्सर देखा गया है  वोट बैंक की राजनीति के लिए तरह-तरह के सांप्रदायिक मुद्दों को उठाकर सांप्रदायिक विद्वेष पैदा करने की कोशिश की जाती है। जिसके कारण भारत के 2 बड़े समुदायों में अविश्वास पैदा होता है। इसी प्रकार की राजनीति  के द्वारा ही पश्चिम बंगाल में इतनी हिंसा देखी जा रही है। जबकि इस राज्य के द्वारा ही अक्सर रोंगिया और अन्य विदेशी  घुसपैठिए हमारे देश में प्रवेश कर जाते हैं। अभी कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन के  एक प्रदर्शन में सांप्रदायिक नारे लगाए गए जो सामाजिक सद्भाव को प्रभावित करने के लिए पर्याप्त है।  इस सब को देखते हुए देशवासियों को इजराइल से सबक सीखना चाहिए कि किस प्रकार इजराइल जैसे छोटे देश ने चारों तरफ से घिरा होने के बावजूदअपनी राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत बनाया और आज वह एक  विश्व शक्ति है।  इसका मुख्य कारण है कि इजराइल में वहां का हर निवासी राष्ट्रीयता की भावना से परिपूर्ण होने के साथ-साथ सबसे पहले इजराइली है। इसी के कारण 1967 से लेकर आज तक इजराइल ने अपने अरब दुश्मनों को मुंह तोड़ जवाब दिया और आखिर में अब यह अरब देश उसी  इजराइल से दोस्ताना संबंध बनाना चाहते हैं जिसको वह एक दिन मिट्टी में मिलाना चाहते थे।

अभी तक जब भी भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए  कोई खतरा उत्पन्न होता है तब तब भारत की जनता ने  राष्ट्रीयता का परिचय देते हुए डटकर दुश्मन का मुकाबला किया है। जिसका प्रदर्शन पाकिस्तान के विरुद्ध 1947 से लेकर आज तक लड़े गए पांच युद्धो  में भारत की जनता ने किया है और चीन को भी गलवान में और अन्य  सीमावर्ती क्षेत्रों में करारा जवाब दिया गया है। इसको देखते हुए हमें पाकिस्तान की चालों को नाकाम करते हुए भारत की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा को अफगानिस्तान की स्थिति को देखते हुए और भी मजबूत बनाना है जिससे पाकिस्तान अपनी चारों में सफल न हो पाए।

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लेखक
कर्नल शिवदान सिंह (बीटेक एलएलबी) ने सेना की तकनीकी संचार शाखा कोर ऑफ सिग्नल मैं अपनी सेवाएं देकर सेवानिवृत्त हुए। 1986 में जब भारतीय सेना उत्तरी सिक्किम में पहली बार पहुंची तो इन्होंने इस 18000 फुट ऊंचाई के दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र को संचार द्वारा देश के मुख्य भाग से जोड़ा। सेवानिवृत्ति के बाद इन्हें दिल्ली के उच्च न्यायालय ने समाज सेवा के लिए आनरेरी मजिस्ट्रेट क्लास वन के रूप में नियुक्त किया। इसके बाद वह 2010 से एक स्वतंत्र स्तंभकार के रूप में हिंदी प्रेस में सामरिक और राष्ट्रीय सुरक्षा के विषयों पर लेखन कार्य कर रहे हैं। वर्तमान में चाणक्य फोरम हिन्दी के संपादक हैं।

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