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तालिबान के खौफ से सहमे अफगान, देश छोड़ने का कर रहे बेसब्री से इंतजार


बुध, 25 अगस्त 2021   |   3 मिनट में पढ़ें

काबुल, 24 अगस्त (एपी) अफगानिस्तान पर इस महीने तालिबान के नियंत्रण के बाद अफगान नागरिकों के लिये एक झटके में सबकुछ बदल गया है। दरवाजे पर कोई दस्तक दे तो लोग सहम जाते हैं। हर पल अंतहीन सा लगता है। तालिबान के खौफ से घरों में रहने को मजबूर अनेक अफगानों के लिये यह एक नयी हकीकत है।

मजार-ए-शरीफ में रहने वाली पत्रकार मोबिना (39) की हर बात में खौफ झलकता है। उनके शहर पर तालिबान के कब्जे के बाद वह अपने दो बच्चों के साथ वहां से भाग गईं और फिलहाल काबुल के एक सुरक्षित गृह में पनाह लिये हुए हैं।

मोबीना कहती हैं, ”हम खुद से पूछ रहे हैं कि आगे क्या होने वाला है? हम इसलिये सहमे हुए हैं कि कुछ भी ठीक नहीं होने वाला।”

मोबीना 25 लोगों के साथ छुपी हुई हैं। अन्य लोगों में नागरिक समाज समूहों के प्रमुख, महिला अधिकार रक्षक और विकास परियोजनाओं के नेता शामिल हैं।

वे सुरक्षित गृह से बाहर निकलने से भी डरते हैं। वे कहते हैं कि उन्होंने सुना है कि तालिबान लड़ाके सड़कों पर घूम रहे हैं, महिलाओं को रोक रहे हैं और उनसे पूछ रहे हैं कि उनका पुरुष अनुरक्षक कहां है। तालिबान के पिछले शासन के तहत, महिलाओं को इस तरह के अनुरक्षण की आवश्यकता थी।

मोबीना ने कहा, ”हमारे दोस्त हमें पैसे भेज रहे हैं ताकि हम खाने का खर्च उठा सकें। इससे हमें लगता है कि लोग हमें भूले नहीं हैं।”

ऐसा ही कुछ हाल काबुल में रहने वाली मुमताज का भी है। उनके पिता सरकार के लिये काम करते थे और भाई की 2010 में लगमान प्रांत में ग्रेनेड हमले में मौत हो चुकी है, जहां तालिबान लंबे समय से सक्रिय रहा है। 15 अगस्त को जब तालिबान लड़ाकों ने काबुल में प्रवेश किया तो उनका परिवार भागकर काबुल हवाई अड्डे पर पहुंच गया, जहां उनका सामना भारी भीड़, अराजक स्थिति और गोलीबारी से हुआ, जिसके बाद वे वापस घर लौट आए। तब से वे अपने अपार्टमेंट से नहीं निकले हैं।

मुमताज के परिवार को जब उनके एक पड़ोसी ने बताया कि एक सशस्त्र समूह उनकी तलाश कर रहा है, तो उनकी चिंताएं और बढ़ गईं। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि घर-घर पर दस्तक दे रहे वे लोग तालिबान के लड़ाके हैं या फिर तालिबान के देश पर नियंत्रण के बाद जेलों से आजाद हुए अपराधी हैं।

मुमताज (26) कहती हैं, ”हम बाहर नहीं जा सकते। हम अपने पड़ोसी से अपने लिये भोजन मंगवा रहे हैं। हम बहुत डरे हुए हैं।’ मुमताज ने हाल में विधि विद्यालय से स्नातक की पढ़ाई पूरी की है।

मोबीना और मुमताज ने कहा कि उन्हें प्रतिशोध का डर है, लिहाजा उनके पहले नाम को ही सार्वजनिक किया जाए। दोनों का कहना है कि उन्हें अब तक प्रत्यक्ष रूप से तालिबान से धमकियां नहीं मिली हैं।

तालिबान लड़ाकों ने पूरे काबुल में चौकियां लगा दी हैं। वे मोटर वाहन पर जा रहे हर व्यक्ति को रोककर उनसे पूछ रहे हैं कि वे कहां जा रहे हैं और उनके वाहन के कागज देख रहे हैं। कुछ ऐसी खबरें भी आई हैं कि तालिबान लड़ाके पूर्व सरकारी कर्मचारियों और सिविल कार्यकर्ताओं की तलाश में घर-घर दस्तक दे रहे हैं।

हालांकि, ऐसी खबरों की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं की गई है। बड़े पैमाने पर घर-घर तलाशी का कोई संकेत नहीं मिला है।

तालिबान कमांडरों ने कहा है कि उनके पास हथियार और कारों सहित सरकारी संपत्ति को जब्त करने के निर्देश हैं, लेकिन उन्होंने अपने लोगों से निजी संपत्ति का सम्मान करने के लिए कहा है। तालिबान नेताओं ने भी सरकारी कर्मचारियों को काम पर लौटने के लिए प्रोत्साहित किया है। इसके बावजूद पाबंदियों के संकेत दिखाई दे रहे हैं।

सर-ए-पुल प्रांत में तालिबान ने निर्देशों की एक सूची जारी की। इनमें संगीत, पश्चिमी शैली की पोशाक और ऐसी नौकरियों पर पाबंदी शामिल हैं, जिनमें महिलाओं को सार्वजनिक रूप से उपस्थित होना पड़ता है।

इस बीच, देश के तीसरे सबसे बड़े शहर हेरात में लड़कियों को स्कूल जाने की अनुमति है। हालांकि इसपर शर्त यह है कि उनके शिक्षक या तो महिलाएं या फिर बुजुर्ग व्यक्ति होने चाहिये।

कुछ लोगों का कहना है कि यह तालिबान के हित में है कि वे 1996 से 2001 तक के अपने पिछले शासन में की गई क्रूरता को न दोहराएं। उन वर्षों में, उन्होंने लड़कियों और महिलाओं को शिक्षा के अधिकार से वंचित कर उनके सार्वजनिक जीवन पर रोक लगा दी थी। साथ ही उन्होंने चोरों के हाथ काटना और सार्वजनिक रूप से फांसी देने जैसे क्रूर दंड देने शुरू कर दिये थे।

जानकारों का मानना है कि देश को चलाने के लिए तालिबान विदेशी दानदाताओं की सहायता पर निर्भर करेगा। साथ ही वह चाहेगा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय उससे खफा न हो, लेकिन जो लोग देश छोड़ने की सोच रहे हैं उन्हें अब भी यकीन नहीं है कि तालिबान जो कह रहा है वह सही है। फिलहाल तालिबान के खौफ से सहमे हर व्यक्ति की जुबान पर केवल एक ही दुआ है कि तालिबान भले ही देश की सत्ता में लौट आया हो, लेकिन उसका पहले जैसा क्रूर शासन दोबारा वापस न लौटे।

एपी जोहेब दिलीप

दिलीप




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POST COMMENTS (1)

Indresh Mishra

अगस्त 25, 2021
तालिबान का क्रूर चेहरा जब अफगानी एक बार 1999-2000 में देख चुके थे,तब ये कौन लोग हैं जो कहते हैं कि अफगानिस्तान की अधिकतम आबादी शरिया चाहती है.?? और यदि ऐसा ही है तो फिर डरे सहमें लोगों की संख्या कुछ लाखों में ही होगी.? तालिबान की आबादी लगभग छ: या सात करोड़ के आसपास है और तालिबानी यदि एक लाख भी मान लें तो वे हर चौराहे पर एक ही खड़े हो सकते हैं.! और एक मुहल्ले की भीड़ चौराहे पर खड़े तालिबानी को क्यों नही दबोच सकते हैं.?? यह क्रम स्वयं अफगानिस्तान जनता करे और तालिबानियों पर पथराव,घरों, छतों, खिड़कियों से हमला इस क्रम में यदि मरता क्या न करता करें तो तालिबान की जड़े हिला सकते हैं बजाय कि घरों में दुबके रहें,नौकरी छोड़ दें,कारोबार और भविष्य चौपट होते तमाशबीन देखते रहें.! हमारे भारत देश में अनेक ऐसे जन आंदोलन हुये जिन्होंने हथियारों के आगे स्वयं को झोंक दिया,मरे कटे लेकिन हार नही मानी.! अफगानी पता नही क्यूँ इतने बेबस, असहाय,बेचारे, डरे सहमें, घरों में छुपे,दुनिया से उम्मीद लगाये बैठे हैं.???

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