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Geopolitics & National Security
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‘लक्षद्वीप की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता’

डॉ शेषाद्री चारी
रवि, 08 अगस्त 2021   |   5 मिनट में पढ़ें

‘लक्षद्वीप एंटी-सोशल एक्टिविटीज रेगुलेशन 2021’ के प्रारूप विधेयक पर लक्षद्वीप के प्रशासक द्वारा इस वर्ष जनवरी में नागरिको से टिप्पणियों और सुझावों को आमंत्रित करने को कम से कम यह कहा जा सकता है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है। प्रारूप विधेयक की अधिसूचना को अदालत में चुनौती दी गई और केरल उच्च न्यायालय ने लक्षद्वीप प्रशासन द्वारा शुरू किए गए सुधारों पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। संभावना है कि प्रस्तावित पहल का विरोध कुछ समय तक जारी रहेगा। लेकिन केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासन के लिए जिम्मेदार केंद्र सरकार को बारह एटोल, तीन रीफ और पांच जल बैंकों के इस सामरिक द्वीपसमूह की समग्र सुरक्षा को मजबूत करने के लिए अपनी पहल को सशक्त करना होगा। लक्षद्वीप हिंद महासागर में एक विशाल जल,छागोस-लक्षद्वीप पर्वत श्रृंखला के केवल एक हिस्से मात्र से अधिकहै।

इस द्वीप के पास 200 किमी चौड़ी फ़नल है जो नाइन डिग्री चैनल के नाम से जानी जाती है। यह फारस की खाड़ी को पूरे पूर्वी एशिया और क्षेत्र के उस हिस्से में अन्य विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के साथ जोड़ने वाली संचार की यह एक महत्वपूर्ण समुद्री लेन है। . कोच्चि में स्थित दक्षिणी नौसेना कमान न केवल प्रशांत क्षेत्र की ओर जाने वाले सभी कार्गो पर पैनी नजर रखती है, बल्कि लक्षद्वीप को अपने संचालन के लिए एक धुरी के रूप में उपयोग करते हुए समुद्री डकैती के खिलाफ एक कवच के रूप में भी कार्य करती है।

दिसंबर2010 में, इंटरनेशनल मैरीटाइम ब्यूरो (आईएमबी) के समुद्री डकैती केंद्र ने रिपोर्ट दि कि एक बांग्लादेशी झंडे वाला जहाज एमवी जहान मोनी यूरोप के रास्ते में 25 चालक दल और 41 हजार टन निकल अयस्क के साथ सोमाली समुद्री डाकू द्वारालक्षदीप सेबमुश्किल 70समुद्री मील की दूरी पर अपहरण कर लिया गया है। यहलक्षद्वीप द्वीप समूह, भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) के इतने करीब पहली समुद्री डकैती थी। विडंबना यह है कि समुद्री डाकू भारतीय जल में एक घंटे से अधिक समय तक जहाज का पीछा करते रहे , जबकि भारतीय नौसेना का एक बहु-जहाज टास्क फोर्स समुद्री डाकू मूल के  जहाजों के लिए खोज अभियान चला रहा था। तीन महीने बाद नौसेना और तटरक्षक बल द्वारा लक्षद्वीप द्वीप समूह (ऑपरेशन आइलैंड वॉच) के संयुक्त निगरानी अभियान में 16 मछुआरों को मुक्त कराया गया। कथित तौर पर लगभग 120 समुद्री लुटेरों को पकड़ा गया था। तत्कालीन रक्षा मंत्री ने संसद को सूचित किया कि समुद्री डकैती की 121 घटनाएं हुई जिसमे से दो भारतीय जल क्षेत्र में हुई हैं और 350 से अधिक चालक दल को बंधक बना लिया गया है।

बाद की जांच से ज्ञात हुआ कि इनमें से कुछ द्वीपों पर समुद्री लुटेरों और आतंकवादी संगठनों की घटनाओ में वृद्धि हो रही है और वह नापाक और विध्वंसक गतिविधियों के लिए उनका उपयोग कर रहे है। 2008के मुंबई हमले के बाद स्वतंत्र और संयुक्त पूछताछ करने वाली कई सुरक्षा एजेंसियांने सुझाव दिया कि अगर लक्षद्वीप को सुरक्षित नहीं किया गया तो जिहादी संगठन समुद्र से बहुत बड़ी सुरक्षा चुनौती पैदा कर सकते हैं। इसके बाद तटीय सुरक्षा की कमियों की दुर करने के लिए अभ्यास (नेप्च्यून II) आयोजित किया गया था, निर्जन द्वीपों में निगरानी और सतर्कता बढ़ा दिया गया, नए तटरक्षक स्टेशन (डीएचक्यू 12) की स्थापना की गई थी और नजर रखने के लिए वॉच टावर और रडार सेंसर स्थापित किए गए थे। प्रवेश और निकास बिंदुओं पर 2015 तक, स्वचालित पहचान और लंबी दूरी की ट्रैकिंग सिस्टम, नाइट विजन कैमरे, 46 रडार सिस्टम, 16 कमांड और नियंत्रण स्टेशनों को शामिल करके सुरक्षा ढांचे को बढ़ाया गया था। पायरेसी और आतंकवादी स्लीपर सेल को सक्रिय संचालन मोड में आने से रोकने के लिए 38 अन्य रडार स्टेशन और पांच कमांड सेंटर स्थापित किए जाने हैं।

विशेष रूप से यूएनओएसएटी द्वारा ग्रिड प्रौद्योगिकी का उपयोग करके उत्पन्न उपग्रह-आधारित मानचित्र, (संयुक्त राष्ट्र प्रशिक्षण और अनुसंधान संस्थान (यूएनआईटीएआर) परिचालन उपग्रह अनुप्रयोग कार्यक्रम, और उच्च ऊर्जा भौतिकी के यूरोपीय संगठन के बीच एक सहकारी परियोजना) प्रभावी एंटी-पायरेसी टूल में से एक बन गए हैं। लेकिन ये चित्र उन समुद्री लुटेरों के पास भी उपलब्ध हैं जो हाल के वर्षों में तकनीकी रूप से सक्षम हो गए हैं। इसके अलावा,उपग्रह संचार प्रणालियाँ साइबर हमलों के लिए उन्मुख हैं। इस प्रकार,देश का  व्यापार और वाणिज्य बाधित करने के लिए चुनिंदा जहाजों पर हमला करके “वाणिज्यिक चोरी” का भी सहारा ले सकते हैं।

भारत के विरोधियों द्वारा की गई सुरक्षा और तकनीकी प्रगति के लिए बढ़ती चुनौतियों को देखते हुए, हिंद महासागर में सुरक्षा तंत्र को लगातार बढ़ाना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। लक्षद्वीप समुद्र और तट के बीच सुरक्षा समन्वय का एक महत्वपूर्ण बिंदु बन जाता है।

हाल के दिनों में एक अतिरिक्त चुनौती आतंकी संगठनों (आईएसआईएस, सोमालिया के अल-शबाब, अरब प्रायद्वीप में अल-कायदा, ) की बढ़ती संख्या और समन्वित गतिविधियां है जो हिंद महासागर के तटवर्ती इलाकों और निर्जन द्वीपों को सुरक्षित आश्रय और नेटवर्किंग क्षेत्र के रूप में उपयोग करते हैं।

समुद्री डकैती रोधी अभियानों की आड़ में चीन ने जिबूती में एक मजबूत आधार विकसित किया है और हिंद महासागर की निगरानी के लिए उच्च तकनीक का उपयोग करना जारी रखा। इसका लगभग अस्सी प्रतिशत कार्गो, विशेष रूप से कच्चा मालहिंद महासागर से होकर गुजरता है। लक्षद्वीप के पास नाइन डिग्री चैनल एक महत्वपूर्ण पारगमन बिंदु है। कहने की जरूरत नहीं है कि चीन इस बात से आशंकित है कि भारत और अमेरिका और क्वाड की संयुक्त ताकत उसके कार्गो, ऊर्जा आवश्यकताओं और व्यापार के लिए गंभीर चुनौतियां खड़ी कर सकती है।

क्वाड की सुरक्षा सरंचना के रूप में नए सिरे से रुचि हिंद महासागर और हिंद-प्रशांत में नौसेना का बिस्तार और इसके सदस्यों के ठिकानों की संयुक्त ताकत को प्रदर्शित करने वाले सदस्य देशों की नौसेनाओं के बीच समन्वय को बढ़ाने का वादा करती है। जहां तक ​​संचार के सुरक्षित समुद्री मार्गों का संबंध है, लक्षद्वीप एक महत्वपूर्ण अवरोधक बिंदु बन गया है। सामरिक विश्लेषक रॉबर्ट कापलान भारत की रिवेटिंग सेंट्रलिटी में लिखते हैं, “भारत हिंद महासागर में फैला हुआ है … यह दुनिया का ऊर्जा अंतरराज्यीय,पूर्वी एशिया के मध्यवर्गीय सांद्रता में पश्चिम एशिया से उपभोक्ताओं के लिए हाइड्रोकार्बन ले जाने वाले मेगाशिप का लिंक है। इस प्रकार, भारत, हिंद महासागर की मदद से, ग्रेटर पश्चिम एशिया की भू-राजनीति को पूर्वी एशिया की भू-राजनीति से जोड़ता है – यूरो एशिया के नौगम्य दक्षिणी किनारे में संघर्ष और प्रतिस्पर्धा का एकीकृत और जैविक भूगोल बनताहै।” नई दिल्ली का वैश्विक व्यापार या नौसैनिक आपूर्ति श्रृंखला तंत्र में बाधा बनने का कोई इरादा नहीं है। लेकिन क्वाड को पता होना चाहिए कि भारतीय नौसेना पीएलए नेवी (प्लान) से बेहतर है और यह हिंद महासागर में कार्गो की नाकाबंदीखासकर लक्षद्वीप के पास नाइन डिग्री चैनल से उत्तर में चीन के दुस्साहस का मुकाबला कर सकती है,इस प्रकार लक्षद्वीप देश के बल प्रदर्शन के लिए एक महत्वपूर्ण द्वीप है और इसे हिंद महासागर, इंडो-पैसिफिक और भारत के विस्तारित पड़ोस में चीन के बढ़ते प्रभाव के लिए एक भय पैदा करने वाले के रूप में विकसित किया जा सकता है।

नई दिल्ली ने कभी भी हिंद महासागर का इस्तेमाल किसी अन्य देश के खिलाफ एक ताकत के रूप में नहीं किया है, हालांकि आईओआर ने 1965और 1971में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि लक्षद्वीप की सुरक्षा किलेबंदी नई दिल्ली की उच्च प्राथमिकता है। कारवार में आईएनएस कदंबा नौसेना बेस को सबसे बड़ी नौसैनिक संपत्ति के रूप में विकसित किया जा रहा है और यह लक्षद्वीप के साथ घनिष्ठ संबंध में रहेगा। लक्षद्वीप में किलेबंदी को कारवार में बुनियादी ढांचे के विकास के साथ जोड़ा जा रहा है और यह बड़े तटीय सुरक्षा ढांचे का हिस्सा है। जब यह पूरा हो जायेगा तो स्वेज नहर के पूर्व में सबसे बड़ा नौसैनिक अड्डा बन जायेगा।

नई दिल्ली को लक्षद्वीप की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए, लेकिन साथ ही उसे स्थानीय नागरिको को विश्वास में लेना होगा और उन्हें मौजूदा नियमों और विनियमों में प्रस्तावित परिवर्तनों को समझाना होगा। प्रशासक के खिलाफ आरोपों का कोई आधार नहीं है। यह राजनीति से प्रेरित है।


लेखक
डॉ शेषाद्रि चारी विदेश नीति, रणनीति और सुरक्षा मामलों पर टिप्पणीकार हैं। वह फोरम फॉर इंटीग्रेटेड नेशनल सिक्योरिटी (FINS) के महासचिव और अंग्रेजी साप्ताहिक आयोजक के पूर्व संपादक हैं।

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POST COMMENTS (1)

सुनील कुमार नेगी

अगस्त 20, 2021
सथानीय नागरिकों का पूर्ण समर्थन सेना के नैतिक बल को कई गुणा बढा देता है और शत्रु को किसी कमजोर कडी की अनुकूल स्थिति से वंचित रखती है। स्थानीय लोगों के विश्वास जीतने मे किए सभी प्रयास रणनीतिक दूरदर्शिता व राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण निवेश है।

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