• 25 April, 2024
Geopolitics & National Security
MENU

ट्विटर युद्ध – भारत की सुरक्षा के विषय में कौन तय करता है?

पवन दुग्गल
सोम, 09 अगस्त 2021   |   5 मिनट में पढ़ें

पिछले कुछ सप्ताहों में भारत सरकार और सोशल मीडिया घटक संस्थाओ के बीच तनाव बढ़ा है। इन् सभी सोशल मीडिया घटकों में ट्विटर और व्हाट्सएप अत्याधिक प्रचलित है।
ट्विटर विवाद में पूरे मुद्दे की जड़ ट्विटर के दायित्वों और मध्यस्थो की गतिविधियों को नियंत्रित करने के बारे में भारत सरकार की भूमिका से सम्बद्ध है।

यह सब तब शुरू हुआ जब एक विशेष टूलकिट के बारे में जानकारी ट्वीट की गई, जिसे ट्विटर द्वारा “हेर फेर मीडिया” के रूप में चिह्नित किया गया था। टूलकिट के इस ट्वीट को कई राजनीतिक हस्तियों ने रीट्वीट किया था। इसलिए, उक्त टूलकिट की जानकारी को “हेरफेर मीडिया” के रूप में चिह्नित करने से बहुत अधिक तनाव उत्पन्न होने लगा । परिणाम स्वरुप, भारत सरकार ने भारतीय राजनेताओं के ट्वीट्स को “हेरफेर मीडिया” के रूप में वर्गीकृत करने के लिए ट्विटर के प्रति कड़ी आपत्ति व्यक्त की।
इस शिकायत की जांच की जा रही है। दिल्ली पुलिस ट्विटर के दिल्ली और गुरुग्राम कार्यालय में एक साथ उन्हें नोटिस देने और अधिक जानकारी प्राप्त के लिए पहुंची। ट्विटर ने इसका जवाब देते हुए कहा कि सरकार की कार्रवाई ट्विटर इंडिया के कर्मचारियों को डराने-धमकाने वाली है और यह लोगों के बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का भी उल्लंघन है।
इस पूरे मामले का केंद्र बिंदु एक मध्यस्थ के रूप में ट्विटर के दायित्व और इस संबंध में केंद्र सरकार की भूमिका से संबंधित है।

सबसे पहले तो इस बात की सराहना की जानी चाहिए कि भारत एक बड़ा देश है। इसके अलावा, एक बड़े देश के रूप में, भारत सरकार को भारत की संप्रभुता, सुरक्षा और अखंडता के प्रति अपने दायित्वों की रक्षा करने का पूरा अधिकार है।

यह ध्यान देने योग्य है कि मध्यस्थो को इलेक्ट्रॉनिक प्रारूप पर वर्ष 2000 के भारतीय साइबर कानून यानी सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम पर भारतीय मौलिक नियमो द्वारा शासित किया जाता है। मध्यस्थों को सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, वर्ष 2000 की धारा 79 के अंतर्गत कानूनी दायित्व में छूट दी गई है। साइबर कानून उसके नियमों और विनियमों का अनुपालन करने के लिए अधिशासित करता है जिनमे वह अपने कार्यो का पूरी निष्ठा से अनुपालन करेंगे और किसी प्रकार के दोष और अपराध की साज़िश नहीं करेंगे ।

२५ फरवरी २०२१ को, भारत सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, २०२१ को अधिसूचित किया। उक्त नियमों का उद्देश्य केवल मध्यस्थो के विभिन्न मापदंडों को फिर से स्थापित करना, दोहराना और उन पर बल देने के विविध परिमापो का विस्तार करना ही नहीं था बल्कि मध्यस्थो के मामलो को विनियमित करने के लिए केंद्र सरकार की शक्तियों से सम्बन्धित भी था।
सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 एक विशेष सहायक कानून हैं क्योंकि इन नियमों को सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 87 के तहत केंद्र सरकार द्वारा प्रदत्त शक्तियों के अंतर्गत अधिनियमित किया गया था। यह प्रासंगिक है कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 एक विशेष कानून है और उक्त कानून की धारा 81 के आधार पर इसके प्रावधान उस समय लागू किसी अन्य कानून से अधिक होगे।

उक्त नियमों के तहत, ट्विटर सहित सभी मध्यस्थों के लिए अनिवार्य है कि वे अपने उपयोगकर्ताओं को उन शर्तों, गोपनीयता नीति और उपयोगकर्ता अनुबंध को होस्ट करने, प्रदर्शित करने, अपलोड करने, संशोधित करने, प्रकाशित करने, प्रसारित करने, स्टोर करने, अपडेट करने या साझा न करने के संबंध में सूचित करें जो अन्य बातों के साथ-साथ भारत की एकता, अखंडता, रक्षा, सुरक्षा या संप्रभुता, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों या सार्वजनिक व्यवस्था के लिए हानिकारक हो , या किसी संज्ञेय अपराध के लिए उकसाने का कारण बनती है या किसी अपराध की जांच में रुकावट पैदा करे या अन्य मापदंडों में दूसरे राष्ट्र का अपमान करने वाली हो।

इसके अलावा, ट्विटर सहित सभी मध्यस्थो के लिए अनिवार्य है कि एक बार जब वे अदालत के आदेश के रूप में वास्तविक जानकारी प्राप्त करते है अथवा किसी उपयुक्त सरकारी एजेंसी द्वारा अधिसूचित किए जाने वाली जानकारी को अधिशासित करते है तो वे किसी भी गैरकानूनी जानकारी को होस्ट, स्टोर या प्रकाशित न करें जो किसी भी कानून के तहत निषिद्ध है और भारत की संप्रभुता और अखंडता के हित, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता आदि के रूप में प्रतिबंधित है।

इसके अलावा, सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 के नियम 4 (2) के तहत, 50 लाख से अधिक उपयोगकर्ताओं वाले महत्वपूर्ण सोशल मीडिया को सूचना देने से पहले प्रवर्तक की पहचान और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69 के तहत न्यायालय द्वारा पारित न्यायिक आदेश या सक्षम प्राधिकारी द्वारा पारित आदेश या ऐसा आदेश जो भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, या सार्वजनिक व्यवस्था, बलात्कार, यौन सामग्री या बाल यौन शोषण सामग्री के संबंध में किसी अपराध के लिए उकसाने वाला है तो उसके तथ्यों की पुष्टि करनी होगी।

इसके अलावा, इसके नियम 6 के तहत,वे सभी मध्यस्थ जोमहत्वपूर्ण सोशल मीडिया मध्यस्थ नहीं हैं, यदि उस मध्यस्थ की सूचनाका प्रकाशन, अथवा सूचना का सम्प्रेषण भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों या सार्वजनिक व्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकता है तो इस सम्बन्ध में नियम 4 के तहत उल्लिखित सभी या किसी भी दायित्व का पालन करने का निर्देश देने की शक्ति संबंधित मंत्रालय को दी गई है।

इस प्रकार, उपरोक्त प्रावधानों का एक समग्र अध्ययन यह स्पष्ट करता है कि प्रासंगिक शक्ति जो भारत की सुरक्षा, संप्रभुता और भारत की अखंडता के बारे में निर्णय लेती है, वह भारत सरकार है, जो इस संबंध में एक संप्रभु राष्ट्र की संप्रभु सरकार है।

भारत की सुरक्षा या संप्रभुता से संबंधित मामलों के बारे में मार्गदर्शन करने के लिए मध्यस्थो की कोई भूमिका नहीं है। इसके अलावा, भारत की सुरक्षा से संबंधित किसी भी मामले के लिए एक मध्यस्थ की कोई भूमिका नहीं होती है।

दूसरी ओर, यदि मध्यस्थ सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 के तहत प्रदान किये गये अनिवार्य दायित्वों का अनुपालन नहीं करते हैं, तो उन्हें कानूनी दायित्व की उनकी वैधानिक छूट से वंचित कर दिया जाएगा। इसके अलावा, वे और उनके शीर्ष प्रबंधन सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 और भारतीय दंड संहिता, 1860 के तहत अपराधों के लिए दंडित किए जाने के लिए उत्तरदायी होंगे, जैसा कि सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता)के विनियमो के नियम 7 के तहत निर्धारित है।

अतः, भारत की सुरक्षा से संबंधित सभी पहलुओं को निर्धारित करने के लिए भारत सरकार एकमात्र और संप्रभु निर्णायक है। कानून के मौजूदा मानकों के अनुसार मध्यस्थो द्वारा भारत सरकार और उसके अधिकारियों द्वारा पारित सभी आदेशों का पालन किया जाना चाहिए यदि वे आपराधिक मुकदमे का सामना नहीं करना चाहते हैं।

मधय्स्थ, वर्षों से, भारतीय साइबर कानून का पालन करने में काफी लापरवाह रहे हैं। सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए कुछ जनहित याचिकाएं भी दायर की गई हैं। हालांकि, इस दौरान इन नियमों को रद्द या निरस्त नहीं किया जाता है। संप्रभुता, सुरक्षा और भारत की अखंडता और अन्य देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों के लिए तथा भारत सरकार द्वारा दिए गए निर्देशों के हित में मध्यस्थो को इसका पालन करना होगा।

यह लेख बहुत स्पष्ट है। भारतीय साइबर कानून का अनुपालन मस्ध्स्थो के लिए भारत में व्यवसाय को संचालित करने की एक मिसाल है। मध्यस्थो को साइबर कानून के इस प्रमुख मौलिक कानूनी सिद्धांत के महत्व को पहचानना होगा और लागू साइबर कानूनी ढांचे के परिमानकों के अनुपालन को सुनिश्चित करना होगा।


लेखक
पवन दुग्गल भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक प्रसिद्ध वकील हैं और साइबर कानून और साइबर सुरक्षा कानून के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध विशेषज्ञ हैं। वह साइबर सुरक्षा कानून पर अंतर्राष्ट्रीय आयोग के अध्यक्ष भी हैं।

अस्वीकरण

इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और चाणक्य फोरम के विचारों को नहीं दर्शाते हैं। इस लेख में दी गई सभी जानकारी के लिए केवल लेखक जिम्मेदार हैं, जिसमें समयबद्धता, पूर्णता, सटीकता, उपयुक्तता या उसमें संदर्भित जानकारी की वैधता शामिल है। www.chanakyaforum.com इसके लिए कोई जिम्मेदारी नहीं लेता है।


चाणक्य फोरम आपके लिए प्रस्तुत है। हमारे चैनल से जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें (@ChanakyaForum) और नई सूचनाओं और लेखों से अपडेट रहें।

जरूरी

हम आपको दुनिया भर से बेहतरीन लेख और अपडेट मुहैया कराने के लिए चौबीस घंटे काम करते हैं। आप निर्बाध पढ़ सकें, यह सुनिश्चित करने के लिए पूरी टीम अथक प्रयास करती है। लेकिन इन सब पर पैसा खर्च होता है। कृपया हमारा समर्थन करें ताकि हम वही करते रहें जो हम सबसे अच्छा करते हैं। पढ़ने का आनंद लें

सहयोग करें
Or
9289230333
Or

POST COMMENTS (0)

Leave a Comment